वृन्दावन में राधा थी बैठी अकेली
सांयकाल में राह देख रही थी चुन-चुन चमेली
गोपाल ने वादा किया था आने का
साथ में बांसुरी की धुन सुनाने का
पंक्षियो की कलरव उसे सता रही थी
विरह की वेदना उसके हृदय को जला रही थी
उषा जाते हुए कर रही थी ठिठोली
पवन के स्पर्श से काँप रही थी राधा की हथेली
विरह की वेदना से जब मुख पर खींची चिंता की लकीरे
सकुचाई घबराई वो पहुंची यमुना तीरे
राह में रश्मि से उसने दिल का हाल सुनाया
उसने जाने की जल्दी में दिल ना बहलाया
जैसे राधा पहुंची यमुना किनारे
बांसुरी की धुन सुन उसके मन में फूटे खुशियो के फवारे
ये खुशी हो गई लुप्त जब कृष्ण पर पड़ी नज़रियाँ
बजा रहे थे कृष्ण बांसुरी और नाच रही थी गोपियाँ
इतना देख तन गयी भृकुटि राधा की
पुरे तन बदन में लग गयी आग जलन की
श्री कृष्ण को जब इसका हुआ अहसास
दौड़े पहुंचे वो राधा के पास
कृष्ण पेश करने लगे अपनी सफाई
राधा को यह बात राश न आयी
पश्चाताप में कन्हैया हो गए एक पाऊँ पर खड़े
हृदय का छोब अंशरू बन कर टपक पड़े
निशा भी पहुंची देखने राधा कृष्ण का मिलन
चांदनी को भी ये सब देख हो रहा था जलन
अंततः राधा रानी ने हठ छोड़ा
दोनों ने अपने हृदय को जोड़ा
मिलन की ये बेला देखने पहुंचे सितारे
मंद मंद मुश्का रहे थे यशोदा के प्यारे
श्री कृष्णा फिर लगे बांसुरी बजाने
राधा के हृदय में मधुर धुन समाने